सुना था बहुत, ये इश्क नहीं आशां
बस इतना समझ लिझे, इक आग का
दरिया है और डूब के जाना है।
हंसा था इस पे बहुत मैं,
कैसी आग और कैसा दरिया?
आह! जब गुजरी ख़ुद पे,
तो हँसी नही, आया रोना।
सच है, ये इश्क नही आशां।
शायरों ने भले ही लिखा कुछ
बढाकर, पर लिख दिया वो,
जो मुमकिन नहीं
बयां लफ्जों में करना आशां!!!!!!!!!!
Thursday, May 14, 2009
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han likha to bilkul sach h....par tujhe ishq vishaq kaha se ho gya mere dost....;) :P
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