Thursday, May 14, 2009

sab mere dimag ki virtual image hai....kuch bhi sach nhi hai......

मेरी टीचर मेनू कहन्दी है आंदा नही मेनू कुछ भी
पापा मेनू कहंदे है तू मेरा नाम दुबायेगा ,मेरी अम्मा मेनू
कहेंदी है एक सोनी कुडी मेनू मिलेगी तेनु मेरे यार कहेंदे है
तू मुंडा कमाल है। मेरे पहले टेस्ट की तेयारी की मैंने ऐसे
सारे सुब्जेक्ट्स के नाम मेनू अब है याद। अचानक आया
मुझे ये ख्याल छोडू ये सब बातें, सुनो ये कहानी नई रात को
जब में छत पर बैठा था, देख रहा था मैं आसमान को
पता नही क्यूँ आँख मैं मेरे आँसू आ गए , मैंने देखा ख़ुद को रोते
मुझे लगा कुछ अलग सा ...की क्या हूँ में अकेला
दिन भर कॉलेज मैं फिरता हूँ शाम होती है तो सोचता हूँ
शाम क्यूँ हुई अब मैं सोचता हूँ उन दिनों के बारें में, सब कुछ इतना
जल्दी जल्दी हो रहा है की क्या बताऊँ जैसे कल की हो ये बात
अब तो रोंदा हूँ मैं पर पता नही क्यूँ , न समझेगी वो, न समझूंगा
मैं कभी, इधर भी वो उधर भी वो बस वो ही वो .....
मेरे जानने से या न जानने से क्या होगा, जानता हूँ मैं पर वो नही
जानती, इतने दिंनों से पता नही क्या कहूं पर जब भी देखता हूँ उसे
लगता है जैसे धड़कन रुक सी गई, जानता हूँ की हूँ मैं बर्बाद इन्सान केसा , पर पता
नही क्यूँ सोचता हूँ मैं ऐसा, गाना लिखना आता नही पर फिर भी लिखता हूँ मैं
इधर भी वो उधर भी वो जिधर देखू बस वो ही वो (she)! पता नही कब मिलेगी वो.....
Posted on by Abhishek Jain | No comments

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